बिहार में पलायन एक सबसे बड़ी समस्या
आखिरकार जिस बिहार में पूरे विश्व को शून्य और पाई दिया, जिस बिहार ने पूरी दुनिया को सबसे पहले लोकतंत्र और गणतंत्र की विचारधारा दी आज वही बिहार बदहाल क्यों है? इन सारे सवालों का जवाब सिर्फ एक ही है “बिहार में पलायन एक सबसे बड़ी समस्या हैं।”
नेपाल की तराई भूमि के नीचे और गंगा के उपजाऊ मैदान के किनारे बसा बिहार भारत का एक ऐसा राज्य है जो कभी पूरे विश्व के लिए आकर्षण का केंद्र था। प्राचीन भारत मे 16 महाजनपद थे जो कि दुनिया के सबसे शक्तिशाली पुराने और सम्पन्न जनपद थे जिनमें से अंग और मगध महाजनपद बिहार के अंतर्गत ही था। लेकिन बात यहाँ बिहार के गौरव की नही बिहार के बदहाली की है।
आमतौर जब भी बिहार में पलायन की बात होती है तो लोग इसका मतलब मजदूरों के पलायन से जोड़ते हैं। लेकिन बिहार में पलायन सिर्फ मजदूरों का नही बल्कि छात्रों, उद्यमियों और कुशल कारीगरों का भी होता है। बिहार में पलायन एक सबसे बड़ी समस्या है और यह समस्या अचानक से नही उभरी बल्कि इसके लिए दो से तीन दशक यानी लगभग 20 से 30 साल की राजनैतिक आर्थिक और सामाजिक विफलता जिम्मेवार हैं।
*मजदूरों का पलायन*
बिहार में पलायन के लिए कई कारण हैं। अगर बात हम अविभाजित बिहार की करे तो बिहार के मैदानी भागों में सिर्फ कृषि था और पठारी भागों (आज के झारखंड) में सिर्फ खनिज और उधोग धंधे थे। मैदानी भागों लोगो का पलायन झारखंड के तरफ होता था कुशल कारीगर और मजदूर के रूप में। लेकिन जब झारखंड के बंटवारा हो गया और झारखंड ने हर क्षेत्र में अपने नागरिकों को प्रधानता देना शुरू किया तब यह पलायन देश के अन्य भागों में शुरू हुआ। लोगो ने बेहतर जीवन के लिए महानगरों सहित नेपाल और खाड़ी के देशों का रूख करना शुरू कर दिए।
झारखंड से अलग होने के बाद बिहार में न कोई कल कारखाने थे न कोई उधोग था और न ही कोई आधारभूत ढांचा निर्माण था जिसके कारण लोग मजदूर के रूप दिल्ली मुम्बई पुणे बंगलोर का रुख करने लगे। मजदूरों ने भारत के बाहर नेपाल के काठमाण्डु और खाड़ी के देश जैसे सऊदी अरब, ओमान, कतर और दुबई तक की यात्रा कर डाली।
*छात्रों का पलायन*
मजदूरों के बाद बिहार से पलायन में सबसे अधिक संख्या छात्रों की है। बिहार एक ऐसा राज्य है जहाँ ग्रोथ की बहुत ही आवश्यकता है। यहाँ स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी तो खुलती है, पढ़ाई भी होती है लेकिन जीवन का उद्देश्य कई समस्याओं के बीच उलझ कर रह जाता है। पढ़ाई तो पूरी हो जाती है लेकिन समस्या रोजगार की हो जाती है क्योंकि यहां ना तो आईटी हब है या ना ही कोई प्लेसमेंट और ना ही स्टार्टअप, यहां है तो बस प्रॉब्लम, जिसका सलूशन कई दशकों से ढूंढते आ रहे हैं। प्राइवेट सेक्टर में न यहाँ कोई प्राइवेट कम्पनी है न मार्केट है और न ही कोई उधोग जिससे रोजगार मिले और सरकार के पास इतना साधन नही है की सरकारी नौकरी सबको दे सके इसके लिए बढ़ती जनसंख्या भी बहुत हद तक जिम्मेवार हैं।
*आधारभूत ढांचा की कमी*
आधारभूत ढांचा की कमी के कारण भी बिहार में पलायन होता हैं। लोग बेहतर इलाज बेहतर सुख सुविधा के कारण भी अन्य राज्यो और महानगरों का रुख करते है। बिहार में अस्पतालों की कमी सबसे बड़ी समस्या है और जो थोड़े बहुत कुछ गिने चुने अस्पताल है उनमें बेड, डॉक्टर नर्स और तमाम तरह के आधुनिक मशीनों और सुविधाओं की कमी हैं जिसके कारण लोग बेहतर इलाज के लिए बाहर चले जाते हैं।
*पलायन के प्रभाव* पलायन का बिहार पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ा हैं। बिहार के विकास में सरकार के लाखों कोशिशों को बेअसर कर दे रहा है पलायन। मजदूरों और कुशल कारीगरों के पलायन से बिहार में मजदूरों की कमी हो गयी है जिससे कि यहाँ अन्य राज्यो की अपेक्षा निर्माण कार्य की दर महंगी हो गयी है। महंगे निर्माण कार्य के कारण निर्माण कार्य की रफ्तार भी धीमी हो गयी। कुशल कारीगरों के न मिलने से प्राइवेट कंपनियां जो सरकारी कामो का ठेका ले रही है वो राजस्थान और पश्चिम बंगाल से कारीगरों को लाकर काम करवा रही हैं।
पलायन के साथ प्रवासी लोग अपने साथ कई बीमारियों को एक जगह से दूसरे जगह भी पहुँचा देते हैं। यही समस्या बिहार के साथ भी है। 1981 में HIV एड्स का पहला मरीज अमेरिका में मिला फिर यह बीमारी प्रवासी भारतीय लोगो के साथ 1986 मे भारत के तमिलनाडु तक पहुँच गया। तमिलनाडु से यह बीमारी भारत के अन्य राज्यो में पहुँच गया औऱ बिहार के प्रवासियों ने इस बीमारी को तमिलनाडु, बंगलुरू, चेन्नई और दिल्ली के बिहार के गांवों तक पहुँचा दिया।
कोविड 19 के संक्रमण के समय भी यही हुआ चीन से निकल वायरस प्रवासी भारतीय लोगो द्वारा इटली होते हुये भारत आया और फिर अचानक से लगे लॉकडाउन ने सड़को पर दौड़ते हुये मजदूरों की लंबी कतार के द्वारा करोना वायरस को बिहार के गांवों तक पहुँचा दिया।
छात्रों के साथ साथ बुद्धिजीवियों और अध्यापकों का भी पलायन हो रहा हैं। जिसके कारण बिहार का पढ़ा लिखा वर्ग बिहार से कट जा रहा हैं। यही शिक्षित वर्ग अगर बिहार में ही रहता तो शिक्षा का माहौल बनाता और बेहतर बिहार का निर्माण होता।
पलायन के कारण अन्य राज्यो में स्थित स्कूल, कॉलेज, कल- कारखाने और कम्पनियों में बिहारी युवाओं की भीड़ बढ़ती जा रही हों जो बिहार के बारे में एक नकारात्मक छवि पेश कर रहा है। उधोगपतियों के बीच यह धारणा पनप रही हैं कि बिहार में गरीबी और आधारभूत ढांचा की कमी है जिसके कारण उधोगपति और निवेशक बिहार में निवेश नही कर पा रहे हैं और जब तक किसी भी राज्य में बाहरी निवेश नही होगा तब तक उसका सम्पूर्ण विकास सम्भव नही है और जब विकास ही नही होगा तो पलायन रुकेगा कैसे।
अगले blog में हम बिहार में पलायन एक सबसे बड़ी समस्या है, इस समस्या के समाधान पर बात करेंगे।
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