बिहार में किसानों की स्थिति कैसी है?
देश मे जब कृषि बिल 2020 को लेकर बवाल छिड़ा है ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि बिहार में किसानों की स्थिति कैसी है? आखिर नये कृषि बिल पर अधिकतर पंजाब हरियाणा और पश्चिमी यूपी के किसान ही उग्र क्यों है जबकि बिहार के किसान नये कृषि बिल को लेकर मिलीजुली प्रतिक्रिया दे रहे है। बिहार जहाँ की 77 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है जो कि पंजाब और उत्तर प्रदेश के मुकाबले कही अधिक है। कृषि निर्भरता में अधिकता होने के बाद भी बिहार में किसानों की समस्या कम नही है। बिहार में किसानों की समस्या अन्य राज्यो के अपेक्षाकृत ज्यादा है।
*सिंचाई*
बिहार में किसानों की समस्या में सबसे प्रमुख स्थान सिचाईं का है। लगभग 30 % से भी अधिक भूमि पर सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भर रहना पड़ता है जबकि 5 लाख से अधिक भूमि पर बाढ़ का पानी लगा रहता है, बाढ़ के पानी लगे रहने से उस भूमि पर रवीं फसल की बुआई नही हो पाती है।
बिहार में लगभग 60 प्रतिशत भूमि को सिचाईं के कृत्रिम विधियों का फायदा मिलता है। उत्तर बिहार में जहाँ किसानों को नदियों,नहरों और पम्प सेट से आसानी से जल मिल जाता है। वही दक्षिण बिहार के पठारी क्षेत्रो में नहरों का पानी मुश्किल से ही मिलता है। दक्षिण बिहार में भूमिगत जल का स्तर इतना नीचे है कि पम्प सेट से सिंचाई बहुत मंहगा पड़ जा रहा है। आज़ादी के 73 साल बाद भी बिहार के किसानों के खेतों तक ट्यूबवेल और बिजली नहीं पहुँच सकी है।
*तकनीक*
बिहार में कृषि तकनीक का काफी अभाव है। एक शोध में पाया गया है कि कृषि तकनीक बिहार में सबसे देरी से पहुचते है। आज भी बिहार में कृषि पुराने और परंपरागत विधियों से ही होता है जिसके कारण पैदावार कम होती है साथ ही खर्च भी ज्यादा लगता है और समय भी।
कुछ एक लोग जो बडे किसान है उनके पास आधुनिक मशीनें है, लेकिन छोटे किसानों के पास नही है। छोटे किसानों को बड़े किसानों से ये मशीने भाड़े पर मिलती हैं जो कि आर्थिक दबाव बढ़ा देता है।
*भंडारण*
भंडारण सिर्फ बिहार में किसानों की समस्या ही नही एक ऐसी मुशीबत है जिसका समाधान निकट भविष्य में नजर नहीं आ रहा। दरअसल फसल को काटने के बाद सबसे बड़ी समस्या पैदावार को चूहों और बारिश से बचा कर रखने की होती है लेकिन रखने की समस्या के कारण किसान को अपनी फसल औनो पौने दामों में बेचनी पड़ती है।
2006 में बिहार सरकार ने APMC एक्ट यानी एग्रीकल्चर प्रोड्यूसर मार्केट कमिटी खत्म कर दिया और पैक्स को सरकारी खरीद करने का निर्देश दे दिया। APMC एक्ट खत्म होने से किसानों की समस्या बढ़ गयी। APMC के कारण जिले का कृषि मार्केट उनके फसलों जल्द ही सरकार द्वारा तय MSP पर खरीद लेता था जिससे भंडारण की समय नही होती थी। लेकिन अब पैक्स काफी देरी से और तय मात्रा में खरीदता और अधिक जगहों पर पैक्स असफल भी है। जिसके कारण किसान बिचौलियों को अपनी फसल सस्ते दरों में बेचकर नुकसान उठाने को मजबूर हैं।
*खाद की कालाबाजारी और नीलगाय*
उपरोक्त तीन बड़े समस्याओं के अलावा भी बिहार के किसानों की समस्या है। जिसमे प्रमुखता से खाद की कालाबाजारी और नीलगाय और पलायन है। बिहार का उत्तरी भाग नेपाल से सटा है जिसके कारण उत्तर बिहार आने वाला अधिकतम यूरिया माफियाओ द्वारा अधिक मुनाफे के लिए नेपाल भेज दिया जाता है। जिसके कारण उत्तर बिहार में यूरिया की कमी हो जाती है और किसानों को तिगुने- चौगुने दामों पर यूरिया खरीदनी पड़ती हैं।
बिहार में एक खास प्रजाति का जानवर पाया जाता है जिसको नीलगाय या जंगली गाय कहा जाता है। यह खेतो और बाग बगीचों में रहता है। बिहार में किसानों समस्या में नीलगाय एक ऐसी समस्या है जिसके निदान में आस्था सबसे बड़ी बाधक है। यह नीलगाय रातों में किसानों के लहलहाती फसल को चट कर जाते है लेकिन गाय की प्रजाति होने के कारण आस्था के नाम पर किसान इसे मारते नहीं। कई तरह के जानवरों के संरक्षण करने वाली सरकार भी आजतक नीलगायों के समस्या का निदान करने में असफल हैं।
किसानों के इन सारी समस्या को अब सरकार भी गम्भीरता से नही लेती है न ही किसान भी सरकार के कानों तक चोट करते क्योंकि बिहार में अब न तो कोई किसानों का कोई संगठन है और न ही कोई नेता। सारे नेता और राजनीतिक पार्टियां ये दावा जरूर करती है कि वो किसानों के साथ है लेकिन सच तो यही है कि ये सब राजनीति और वोट बैंक के लिये बस अपनी अपनी जातियों तक सीमित है। दरअसल में बिहार में कृषि से पहले जमीन को लेकर विवाद हो जाता है और जब विवाद कृषि के बजाय जमीनी हो जाता है तो कोई भी नेता इस विवाद में पड़ना नही चाहता है।
शायद यही कारण है कि जिस बिहार ने महात्मा गांधी के अगुवानी में चम्पारण के किसानों ने राजकुमार शुक्ल के नेतृत्व में ऐतिहासिक चम्पारण आंदोलन कर अंग्रेजो की चूल हिला दी और बाद में पूरे देश को स्वामी सहजानंद जैसे किसान नेता को पैदा किया आज उसी बिहार के किसानो की समस्याओं विकराल हो गयी है। चीनी के कटोरा कहे जाने वाले पश्चिमी चंपारण में कई चीनी मिलें बन्द है। 4 साल में डीजल, खाद मजदूरी सब बढ़ गए लेकिन गन्ना का रेट आज भी 4 साल पहले का ही है। मिथला क्षेत्र जो कि पूरे देश मे मखाना उत्पादन में सबसे अग्रणी है वहाँ आज तक मखाना फोड़ने की मशीनें और प्लांट न लग सकी।
आपको बता दु की तकनीक की समस्या और फसल की उचित दाम न मिलने के कारण किसान खेती छोड़ बाहर जाकर मजदूरी करने को मजबूर हैं। कुछ बड़े और सम्भ्रांत किसान तो अपनी खेती योग्य जमीनों पर निर्माण कार्य कर उससे आर्थिक फायदे लेने के कोसिस में है। अगर समय रहते सरकार ने इस ओर ध्यान नही दिया तो किसान कृषि छोड़ अभाव में जीने को विवश हो जाएंगे।
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